बाबरी मस्जिद का विध्वंस और अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण भारतीय इतिहास का एक चुनौतीपूर्ण और विवादास्पद पृष्ठ है। बाबरी मस्जिद, जो उत्तर प्रदेश के अयोध्या में स्थित थी, को 16वीं सदी में मुघल सम्राट बाबर ने बनवाया था। यह स्थान सदियों से विवाद का केंद्र रहा है, क्योंकि कुछ हिन्दू इसे भगवान राम के जन्मस्थल के रूप में मानते हैं।
1984-1989 में विवाद का निर्माण हुआ जब विश्व हिन्दू परिषद (वीएचपी) ने बाबरी मस्जिद के पास राम मंदिर के निर्माण के लिए शिलान्यास (आधारशिला रखने का कार्यक्रम) की शुरुआत की। 1990 में, भाजपा के नेता एल.के. आडवाणी ने रथ यात्रा की, जिसका उद्देश्य राम मंदिर के निर्माण के लिए समर्थन जुटाना था। इस यात्रा ने साम्प्रदायिक तनाव बढ़ाया और 6 दिसंबर 1992 को, राजनीतिक नेताओं की प्रतिश्रुति के बावजूद, एक बड़े समूह ने बाबरी मस्जिद का विध्वंस कर दिया।
1993 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद, सरकार ने लिबरहान आयोग की स्थापना की जो इस घटना की जांच करने के लिए बनाया गया था। इस आयोग ने कई वर्षों तक अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें बाबरी मस्जिद के विध्वंस में शामिल विभिन्न राजनीतिक नेताओं और संगठनों पर आरोप लगाए गए।
2019 में, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक न्याय दिया और अयोध्या में विवादित भूमि को
पूरी तरह राम जन्मभूमि ट्रस्ट को सौंपी। कोर्ट ने यह भी कहा कि बाबरी मस्जिद के विध्वंस अवैध था। इस निर्णय के बाद, राम मंदिर का निर्माण शुरू हुआ और उसका आधारशिला अगस्त 2020 में एक भव्य समारोह में रखा गया।
आधुनिक सांविदानिकता में, बाबरी मस्जिद के विध्वंस और राम मंदिर का निर्माण भारत में राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं। यह देश के राजनीतिक स्वरूप को आकार देने में सहायक हुआ है, जिससे भाजपा, जो इस घटना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, एक प्रमुख राजनीतिक बल बन गई है। यह मुद्दा धार्मिक दरारों को गहरा कर चुका है, जिससे सार्वजनिक चर्चा और पहचान राजनीति को प्रभावित करती है।
समाप्ति में, बाबरी मस्जिद के विध्वंस और राम मंदिर का निर्माण का क्रम भारत के सामाजिक-राजनीतिक दृष्टिकोण की जटिलताओं को प्रतिबिम्बित करता है। यह मुद्दा धार्मिक तनाव, राजनीतिक चक्करव्यू, और समाज की विभाजनों का प्रतीक बना हुआ है, जो राष्ट्र के मार्ग को आगे बढ़ाने में जारी हैं।